प्रेम किसी परिणाम पर
नही पंहुचाता ।
प्रेम जंगल है
जिसमे रहा जा सकता है
सदियों तक
सबसे दूर ........
जनजातियों की तरह ।
प्रेम एक जंगल है
जिसमे एक बार जा कर
अपने आप को भटका हुआ समझ सकते हो तुम,
और रोते रह सकते हो जीवन भर।
प्रेम एक जंगल है
जो एक साथ
सुहावना भी है और डरावना भी ।
जिसमे शान्ति भी है और शोरगुल भी ।
प्रेम एक जंगल है ,
जो मौसम के बदलने के साथ
कभी सूखा तो कभी हरा हो जाता है ।
प्रेम एक जंगल है
और आप मान सकते है ,
की मैं इसमे भटक गई हूँ ।
पर मैं इसी जंगल में रहना चाहती हूँ ,
सदियों तक
जनजातियों की तरह .
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5 comments:
मुझे आप की कुछ पंक्तियाँ बहुत पसंद आयीं और वो निम्न हैं--
प्रेम किसी परिणाम पर
नही पंहुचाता ।
प्रेम जंगल है
जिसमे रहा जा सकता है
सदियों तक
सबसे दूर ........
जनजातियों की तरह ।
प्रेम एक जंगल है
जिसमे एक बार जा कर
अपने आप को भटका हुआ समझ सकते हो तुम,
और रोते रह सकते हो जीवन भर।
प्रेम एक जंगल है
जो एक साथ
सुहावना भी है और डरावना भी ।
जिसमे शान्ति भी है और शोरगुल भी ।
प्रेम एक जंगल है ,
जो मौसम के बदलने के साथ
कभी सूखा तो कभी हरा हो जाता है ।
प्रेम एक जंगल है
और आप मान सकते है ,
की मैं इसमे भटक गई हूँ ।
पर मैं इसी जंगल में रहना चाहती हूँ ,
सदियों तक
जनजातियों की तरह .
चुनू तो किसको?...किस शाखा को अलग करूँ इस वृक्ष से? वृक्ष से अलग शाखा का कोई अस्तित्व नही होता.
बहुत सुंदर लिखा है आपने. और यह रचना मौसम के साथ नही बदलेगी. यह निरपेक्ष है समय काल के, मौसम के.
sach kaha aapne prem ek jangal he..
bahut achcha likhti he aap..
Prem ki ek nayee paribhasha dee hai aapne-JANGAL,
lekin sach hi likha hai
मैं इसमे भटक गई हूँ ।
पर मैं इसी जंगल में रहना चाहती हूँ ,
सदियों तक
जनजातियों की तरह .
bahut hi sundar rachana.
-----------------------"VISHAL"
seema
मैं इसमे भटक गई हूँ ।
पर मैं इसी जंगल में रहना चाहती हूँ ,
सदियों तक
जनजातियों की तरह .
your work on prem is ultimate ji
bahut badhai
Vah vah ! ati sundar !
प्रेम जंगल है
जिसमे रहा जा सकता है
सदियों तक
सबसे दूर ........
जनजातियों की तरह ।
Kya baat hai Seema ji, Behtareen kavita ! badi der aur door tak saath chalegi is kavita ki anugoonj !...........Aabhaar .....
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