Friday, January 23, 2009
देह के अलावा
कितना मुश्किल है देह के अलावा कुछ होना ।
मै केवल देह नही रहना चाहती ।
हो जाना चाहती हूँ ,
प्यार,विश्वास या संवेदना ।
किंतु
दो जीवित देहों के बीच होने वाले व्यापार को प्यार समझने वाले
क्या जाने
कि प्यार एक सद्भावना है ,
जैसे फूल का खिलना ।
कितना मुश्किल है देह के अलावा कुछ होना ।
मैं सिर्फ़ देह नही रहना चाहती
हो जाना चाहती हूँ
विश्वास ।
किंतु
हर क्षण अविश्वास में जीने वाले क्या जाने ,
कि विश्वास एक सत्य है ,
जैसे सूरज का निकलना ।
कितना मुश्किल है देह के अलावा कुछ होना
मैं सिर्फ़ देह नही रहना चाहती
हो जाना चाहती हूँ
संवेदना ।
किंतु
दूसरों के आंसुओं पर मुस्काने वाले क्या जाने
कि संवेदना
माँ की गोद है
जो भूखे बच्चे को सुला सकती है
कितना मुश्किल है देह के अलावा कुछ होना ।
किंतु
मैं होना चाहती हूँ
प्यार
ताकि फूल की तरह खिल सकूँ ।
मैं होना चाहती हूँ
विश्वास
ताकि
सूरज की तरह चमक सकूँ
मैं होना चाहती हूँ
संवेदना
ताकि भोखे बच्चों को सुला सकूँ .
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7 comments:
marmsparshi rachna.. badhai...
सीमा रानी जी
अभिवंदन
बड़ी प्यारी व्याख्या की है आपने ,
देह को और भी कुछ मान कर देखो
सारे भ्रम मिट जायेंगे
पंक्तियाँ जो प्यारी लगीं
प्यार एक सद्भावना है ,
जैसे फूल का खिलना ।
और
विश्वास एक सत्य है ,
जैसे सूरज का निकलना ।
-विजय
देह के अलावा जो है वही गति दे रहा है सभ्यता को. देह के आलावा होना ही तो मनुष्यता का आधार है....बहुत सुंदर विचारों को कसे हुए शब्दों में पिरोया है आपने.
seema
this is awsome.. shabdo se jaise jeevan ki sacchai ko baand diya hai ..
sirf ek maatra ki galti hai " भोखे " ko bhooke likhiyenga
bahut badhai
meri rachnaon ko padhne aur un par apne bahumoolya comments dene ke liye dhanywad, aabhar.
Deh ke alawa aap jo hona chahti hain, wo aapke komal man ki peeda hai jise aapne bakhubi shabdno me abhiviyakt kiya hai.
meri shubkamnaye swikar karen.
very touchy !
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