Wednesday, January 14, 2009


जिन -जिन हाथों ने छुआ मुझे
क्या कहूँ
किन -किन हाथों ने छुआ मुझे.
काले-उजले
रूखे -मांसल
कोमल -कर्मठ
नन्हे -युवा
प्रौढ़ और बूढे
स्त्री -पुरूष नपुंसक ।
जिन -जिन हाथों ने छुआ मुझे ,
क्या कहूँ ........
किन -किन हाथों ने छुआ मुझे ।

हर स्पर्श का है एक इतिहास ।
हर स्पर्श की है एक कहानी |
हर स्पर्श की है एक कविता |
और सच कहू तो ....
हर स्पर्श के अनुभव का ,
एक चित्र भी खिंचा है मेरे मन पर पर |

ये छूने भर के अनुभव ,
इतिहास ,कहानी ,कविता और चित्र ...
केवल मेरे हैं |
ये मुझे रुलाते -हँसाते
गुदगुदाते ,धीरज बंधाते ,
मन रमाते,वितृष्णा जगाते हाथ ,
उन सबके होकर भी केवल मेरे हैं |
जिन -जिन हाथों ने छुआ मुझे ,
क्या कहूँ .....किन -किन हाथों ने छुआ मुझे |

अच्छा है ....छूने से पड़ते हैं जो निशान ,
देह पर नही पड़ते |
बस...मन पर पड़ते है ,
और दूसरे का मन देख पायें ....
ऐसी आँखे नही बनी अब तक |
वरना क्या जाने मैं कैसी दिखती ?
विविधवर्णी .....
क्योंकि हर छुअन का अपना अलग रंग है
और अपना अलग निशान |

जिन -जिन हाथों ने छुआ मुझे
क्या कहूँ ...किन किन हाथों ने छुआ मुझे |

16 comments:

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

ये बड़ी अद्भुत कविता है.....इस पर अपनी टिप्पणी एक पुरूष होकर देने में मुझे बड़ा संकोच हो रहा है....क्यूंकि हर स्पर्श में गोया मैं ख़ुद भी भागीदार हूँ....!!

vijay kumar sappatti said...

seema ji ,

kyua kahun , main to stabd ho gaya hoon aapki ye kavita padhkar..

sach , ek stree ke man ki peedha ko kitna khoobhi se ubhaara hai aapne ..

aapki lekhni ko salaam

meri kavitaon ko padhkar apni tippani dijiyenga ..mera blog : www.poemsofvijay.blogspot.com

aapka mitr
vijay

अभिषेक मिश्र said...

भावपूर्ण कविता. स्वागत ब्लॉग परिवार और मेरे ब्लॉग पर भी.

Vivek Ranjan Shrivastava said...

वर्चुअल जगत में आपकी अभिव्यक्ति का स्वागत है !स्पर्श की मौन भाषा बड़ी ही मुखर होती है ! आपने उसे शब्द देने का प्रयास किया है .

प्रताप नारायण सिंह (Pratap Narayan Singh) said...

अच्छा है ....छूने से पड़ते हैं जो निशान ,
देह पर नही पड़ते |
बस...मन पर पड़ते है ,
और दूसरे का मन देख पायें ....
ऐसी आँखे नही बनी अब तक |
वरना क्या जाने मैं कैसी दिखती ?..........
अद्भुत...बहुत ही मर्मस्पर्शी....

बवाल said...

बहुत ख़ूब ! अद्भुत सुन्दर रचना है जी आपकी, लिखते रहें। वर्ड वेरिफ़िकेशन हटा लें ताकि टिप्पणी करने में लोगों को आसानी रहे। जितनी भी टिप्पणियाँ आएँ, उन सबकी तस्वीरों पर क्लिक करके उन ब्ला॓गरों के प्रोफ़ाइल में जावें और उनके वेब पेज में जाकर उन्हें पढ़ने के बाद, पोस्ट अ कमेण्ट या टिप्पणी करें पर डबल क्लिक करके टिप्पणी करें। नेट से बारहा फ़ोण्ट डाउनलोड करके उसे हिन्दी में सक्रिय करके टिप्पणियाँ करें। नए ब्लागर्स की सुविधा के लिए :-
www.lal-n-bavaal.blogspot.com के सौजन्य से। धन्यवाद।

Prakash Badal said...

बढ़िया कविता स्वागत है

सागर said...

"अच्छा है ....छूने से पड़ते हैं जो निशान ,
देह पर नही पड़ते |
बस...मन पर पड़ते है..... "

संवेदनाओं की अभिव्यक्ति भाव पूर्ण है !

Unknown said...

achhi post...swagat hai...bhawo or shabdon ka achha talmail dikha....
likhte raho....

Jai Ho Magalmay Ho

हें प्रभु यह तेरापंथ said...

सुन्दर

Publisher said...

बहुत अच्छा! सुंदर लेखन के साथ चिट्ठों की दुनिया में स्वागत है। चिट्ठाजगत से जुडऩे के बाद मैंने खुद को हमेशा खुद को जिज्ञासु पाया। चिट्ठा के उन दोस्तों से मिलने की तलब, जो अपने लेखन से रू-ब-रू होने का मौका दे रहे है का एहसास हुआ। आप भी इस विशाल सागर शब्दों के खूब गोते लगाएं। मिलते रहेंगे। शुभकामनाएं।

प्रकाश गोविंद said...

लाजवाब कविता
सार्थक रचना !

सीधे दिल को छूती हैं पंक्तियाँ !

इतनी सारगर्भित प्रस्तुति के लिए बधाई !

आगे भी ऐसी ही रचनाएं लेकर आयेंगी आप !
ऐसी उम्मीद है !

मेरी हार्दिक शुभकामनाएं !

पी के शर्मा said...

पुलिस और कविता
कविता तो कोमल फूल से मन में जन्‍म लेती है। महक भी होती है उसमें।
कोमलता और महक वर्दी में,
क...माल है।
निसंदेह।
उम्‍मीद से कहीं आगे है ये कविता।
भावनात्‍मकता से भरपूर
आगे भी लिखिए जरूर
और आइये हमारी 'चौखट' पर आपका
स्‍वागत है।

Anonymous said...

छूने से पड़ते हैं जो निशान ,
देह पर नही पड़ते |

Lekin aapke chhune (marne) ke nishaan to maheeno nahi jate hai. ;)

majak kar raha tha, bhavnao se bharpoor rachana, shayad agar mai stree tota to aur gahrayee se samajh pata, mahsoos kar pata us chhuan ko.

--------------------------"VISHAL"

Sanjay Grover said...

पेशे से पुलिस ,धर्म से मनुष्य ,शरीर से स्त्री ,मन से उभयलिंगी और स्वभाव से प्रेमी .

ek maulik manushya tis par ek maulik kaviyitri ka is-se behtar parichaya aur ho bhi kya sakta hai!
Buck Up seemaji, Lagi Rahiye.

Dr. Virendra Singh Yadav said...

sandar vichar aur blog ke liye badhai sahitya kabhi pesha nahi dekhata.utkrist lekhan ke liye badhai